हम धार्मिक नहीं हैं और हम अपने को धार्मिक समझ रहे हैं - ओशो
हम धार्मिक नहीं हैं और हम अपने को धार्मिक समझ रहे हैं - ओशो
मैंने सुना है, एक पागलखाने का नेहरू निरीक्षण करने गए थे। उस पागलखाने में उन्होंने जाकर पूछा कि कभी कोई यहां ठीक होता है? स्वस्थ होता है? रोग से मुक्त होता है? तो पागलखाने के अधिकारियों ने कहा कि निश्चित ही, अक्सर लोग ठीक होकर चले जाते हैं। अभी एक आदमी ठीक हुआ है और हम उसे तीन दिन । पहले छोड़ने को थे, लेकिन हमने रोक रखा कि आपके हाथ से ही उसे हम मुक्ति दिलाएंगे। उस पागल को लाया गया, जो ठीक हो गया था। उसे नेहरू से मिलाया गया। नेहरू ने उसे शुभकामना दी कि तुम स्वस्थ हो गए हो, बहुत अच्छा है।
चलते-चलते उस आदमी ने पूछा कि मैं लेकिन आपका नाम नहीं पूछ पाया कि आप कौन हैं? नेहरू ने कहा, मेरा नाम जवाहरलाल नेहरू है। वह आदमी हंसने लगा। और उसने । कहा, आप घबड़ाइए मत। कुछ दिन आप भी इस जेल में रह जाएंगे, तो ठीक हो जाएंगे। पहले मुझे भी यह खयाल था कि मैं जवाहरलाल नेहरू हूं। तीन साल पहले जब आया था, तो मुझको भी यही भ्रम था--यही भ्रम मुझको भी हो गया था कि मैं जवाहरलाल हूं। लेकिन तीन साल में इन सब अधिकारियों की कृपा से मैं बिलकुल ठीक हो गया हूं। मेरा यह भ्रम मिट गया। आप भी घबड़ाइए मत। आप भी दो-तीन साल रह जाएंगे, तो बिलकुल ठीक हो सकते हैं। आदमी के पागलपन का लक्षण यह है कि वह जो है, नहीं समझ पाता; और जो नहीं है, उसके साथ तादात्म्य कर लेता है कि वह मैं हूं। भारत को मैं धार्मिक अर्थों में एक विक्षिप्त स्थिति में समझता हूं, मैडनेस की स्थिति में समझता हं। हम धार्मिक नहीं हैं और हम अपने को धार्मिक समझ रहे हैं।
- ओशो
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